आदिकाल से आज तक मानव ने जो कुछ भी पाया है उसमे एक वर्ग का सबसे बड़ा योगदान रहा है
उसे हिन्दू मान्यता के देव भी अपना सबसे बड़ा भक्त बताते है उसे केवल अपने पेट की भूख नहीं सताती है बल्कि पूरी मानव जाति के पेट का सवाल या मौसम की चिंता सताती है
सुबह अल सवेरे उठ जाता है मुँह अंधियारे
लेता नहीं वो सारा दिन राम का नाम ………….
राजनीति जिस के दम पर साँसे लेती है पर उसे कुछ देती नहीं है , उद्योग-धंधो की जीवन रेखा खीचता है होती यहाँ भी है उसके साथ हेरा – फेरी, देश की सीमाओ की रखवाली की जब भी बारी आती, जान हथेली पर रख सामने दिवार बन, तन जाता है उसका सीना सभी शब्द और उपमा कम पड़ जाती है जब मे किसी किसान को आज भी हल उठाये आते हुए देखता हूँ खेत से ,क्योकि वो जब खेत पर जाता है तो मे सोया रहता किसी की आगोश मे,
सूरज भी जिसके घर से निकलने के बाद है आता
पंछी करते है जिसका अपने गीतों से स्वागत ……………
भारत मे दुनिया की १८ प्रतिशत आबादी है और २ प्रतिशत जमीन, भारत मे प्रति व्यक्ति जंगल का इलाका ०.०८ हक्टेयर है जबकि पूरी दुनिया मे ०.८ हक्टेयर है आब्दी बढने से जमीन की उपलब्धता भी कम होती जा रही है १९०१ मे प्रति व्यक्ति ०.९ हक्टेयर जमीन उपलब्ध थी जो पिछली सदी मे ०.२ हक्टेयर रह गई है इस समय देश की ६० प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है जो मुख्यतया गाँव मे रहती है बाकि बची ४० प्रतिशत आबादी जो उद्योगों और सेवा कार्य मे लगी हुई है जो मुख्यतया शहरी है
देश की ९ प्रतिशत वार्षिक विकास दर से बढ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को विकास के लिए सड़के ,कारखाने ,बाँध ,विमानपतनो और नए शहर के निर्माण के लिए हजारो - लाखो हक्टेयर जमीन को आवश्यकता है जिसके लिए सरकारे भूमि का अधिग्रहण कर रही है इसी कर्म मे नंदीग्राम, सिंगुर, दादरी, अलीगढ, भट्टा पारसोल, जगतसिंहपुर, निय्मागिरी, अमरनाथ, जैतापुर पॉवर प्लांट, टिहरी बाँध, नर्मदा घाटी परियोजना आदि अनेक योजना के लिए किसान से उसकी उपजाऊ जमीन ले ली गई या किसी भी तरह लेने की कोशिश की जा रही है केवल उतर प्रदेश मे मायावती राज के वक्त ९६४०० एकड़ की परियोजना प्रस्तावित की है जिसमे ३२ हज़ार किलोमीटर लम्बा सडको का जाल केवल यूपी से गुजरेगा
भूमि अधिग्रहण का अर्थ होता है उसके मूल निवासियों का पलायन (विस्थापन) जमीन किसान के लिए सिर्फ रोज़ी -रोटी का साधन ही नहीं बल्कि सुरक्षा और इज्जत की गारंटी भी है उन्हें रोज़गार की गारंटी देकर और परियोजना मे उनकी हिस्सेदारी निश्चित करके इस समस्या का समाधान किया जा सकता है
जमीन का सही दाम मिल जाये तो किसान कहीं और जमीन ले लेगा या फिर कोई कम धंधा कर लेगा (स्व. महेंदर सिंह टिकैत )
जिस काम के लिए जमीन ली जाये यदि वह अगले पांच वर्षो तक भी ना हो तो जमीन किसान को वापिस कर दी जाये क्योकि जमीन पर पहला हक किसान का ही है (अजित सिंह)
गाँव और शहरों के बीच मे जीवन स्तर और बुनियादी नागरिक सुविधाओ की उपलब्धता की खाई लगातार गहरी होती जा रही है शहरीकरण का बढावा गाँव के साथ हर स्तर पर हो रहा है भेदभाव की नई समस्याए खड़ी करेगा कहां है गाँव मे अच्छे विद्यालय, अच्छे अस्पताल, अच्छे सामुदायिक केद्र , साफ पानी, भोजन और बिजली
भारत मे कुछ नए प्रयोग भी हुए है जैसे फैब इंडिया (दिल्ली), जिंदल स्टील वर्क्स (प. बंगाल), श्री रेणुका शुगर्स (कर्नाटक), और मागरपट्टा सिटी (पुणे) इन सभी का निर्माण कार्य किसान परिवारों के द्वारा सव्यम किया जिसके लिए कपनी ने उन्हें प्रशिक्षण दिया था
सरकार के इस तरह भूमि अधिग्रहण के उदेश्य के लिए केवल वही किसान अपनी जमीं बेचना चाहते है जो पहले ही शहर आ गया है और उनका भरन पोषण अच्छी तरह से हो रहा है उनकी जमीं तो पहले कोई और जोत जोत रहा था जिसे वह बटाई पर दे चूका है लेकिन जो किसान उस जमीन पर हल जोत रहा था उसका क्या होगा कभी सोच है किसी ने भी , लेकिन जमीन का मालिक तो जमीन जरूर बेचना चाहेगा उसे यदि एक दम उस बटाई का १०० गुना पैसा मिला रहा है तो वह सहर्ष तैयार होगा साथ ही वह किसान भी अपनी जमीन दे सकता है जिससे खेती नही होती और वह मजदूरों से कराता है या शहरी चकाचोंद से भूरी तरह प्रभावित किसान जिसे केवल खुद से मतलब है आने वाली पीढियों से नहीं
मेरा इस लेख से केवल इतना प्रयोजन है की सरकार मे बेठे शहरी लोग जो गाँव से आकर शहर के होकर रह गए है वे इस पर ध्यान दे की शहर अक्सर समस्या को जन्म देते है और गाँव जीवन ये चाहे पर्यावरण के सन्दर्भ मे हो, चाहे संसाधन के उचित प्रयोग के
अंत मे सबसे प्रमुख बात यदि खेती की जमीन ही नहीं रहेगी तब मनुष्य क्या खायेगा जबकि आज भी हमारे देश मे लगभग ३० प्रतिशत आबादी भूखे पेट या अल्प भोजन कर जीवन यापन कर रही है ? क्या आनाज की कम उपज माशाहार को बढ़ावा नहीं देगी ? अभी और बहुत से सवाल बाकी है ............................
जय जवान जय किसान