Wednesday, May 25, 2011

सुबह अल सवेरे उठ जाता है मुँह अंधियारे



आदिकाल से आज तक मानव ने जो कुछ भी पाया है उसमे एक वर्ग का सबसे बड़ा योगदान रहा है
उसे हिन्दू मान्यता के देव भी अपना सबसे बड़ा भक्त बताते है उसे केवल अपने पेट की भूख नहीं सताती है बल्कि पूरी मानव जाति के पेट का सवाल या मौसम की चिंता सताती है
सुबह अल सवेरे उठ जाता है मुँह अंधियारे

लेता नहीं वो सारा दिन राम का नाम ………….

राजनीति जिस के दम पर साँसे लेती है पर उसे कुछ देती नहीं है , उद्योग-धंधो की जीवन रेखा खीचता है होती यहाँ भी है उसके साथ हेरा फेरी, देश की सीमाओ की रखवाली की जब भी बारी आती, जान हथेली पर रख सामने दिवार बन, तन जाता है उसका सीना सभी शब्द और उपमा कम पड़ जाती है जब मे किसी किसान को आज भी हल उठाये आते हुए देखता हूँ खेत से ,क्योकि वो जब खेत पर जाता है तो मे सोया रहता किसी की आगोश मे,
सूरज भी जिसके घर से निकलने के बाद है आता

पंछी करते है जिसका अपने गीतों से स्वागत ……………

भारत मे दुनिया की १८ प्रतिशत आबादी है और २ प्रतिशत जमीन, भारत मे प्रति व्यक्ति जंगल का इलाका ०.०८ हक्टेयर है जबकि पूरी दुनिया मे ०.८ हक्टेयर है आब्दी बढने से जमीन की उपलब्धता भी कम होती जा रही है १९०१ मे प्रति व्यक्ति ०.९ हक्टेयर जमीन उपलब्ध थी जो पिछली सदी मे ०.२ हक्टेयर रह गई है इस समय देश की ६० प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है जो मुख्यतया गाँव मे रहती है बाकि बची ४० प्रतिशत आबादी जो उद्योगों और सेवा कार्य मे लगी हुई है जो मुख्यतया शहरी है
देश की ९ प्रतिशत वार्षिक विकास दर से बढ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को विकास के लिए सड़के ,कारखाने ,बाँध ,विमानपतनो और नए शहर के निर्माण के लिए हजारो - लाखो हक्टेयर जमीन को आवश्यकता है जिसके लिए सरकारे भूमि का अधिग्रहण कर रही है इसी कर्म मे नंदीग्राम, सिंगुर, दादरी, अलीगढ, भट्टा पारसोल, जगतसिंहपुर, निय्मागिरी, अमरनाथ, जैतापुर पॉवर प्लांट, टिहरी बाँध, नर्मदा घाटी परियोजना आदि अनेक योजना के लिए किसान से उसकी उपजाऊ जमीन ले ली गई या किसी भी तरह लेने की कोशिश की जा रही है केवल उतर प्रदेश मे मायावती राज के वक्त ९६४०० एकड़ की परियोजना प्रस्तावित की है जिसमे ३२ हज़ार किलोमीटर लम्बा सडको का जाल केवल यूपी से गुजरेगा
भूमि अधिग्रहण का अर्थ होता है उसके मूल निवासियों का पलायन (विस्थापन) जमीन किसान के लिए सिर्फ रोज़ी -रोटी का साधन ही नहीं बल्कि सुरक्षा और इज्जत की गारंटी भी है उन्हें रोज़गार की गारंटी देकर और परियोजना मे उनकी हिस्सेदारी निश्चित करके इस समस्या का समाधान किया जा सकता है
जमीन का सही दाम मिल जाये तो किसान कहीं और जमीन ले लेगा या फिर कोई कम धंधा कर लेगा (स्व. महेंदर सिंह टिकैत )
जिस काम के लिए जमीन ली जाये यदि वह अगले पांच वर्षो तक भी ना हो तो जमीन किसान को वापिस कर दी जाये क्योकि जमीन पर पहला हक किसान का ही है (अजित सिंह)

गाँव और शहरों के बीच मे जीवन स्तर और बुनियादी नागरिक सुविधाओ की उपलब्धता की खाई लगातार गहरी होती जा रही है शहरीकरण का बढावा गाँव के साथ हर स्तर पर हो रहा है भेदभाव की नई समस्याए खड़ी करेगा कहां है गाँव मे अच्छे विद्यालय, अच्छे अस्पताल, अच्छे सामुदायिक केद्र , साफ पानी, भोजन और बिजली
भारत मे कुछ नए प्रयोग भी हुए है जैसे फैब इंडिया (दिल्ली), जिंदल स्टील वर्क्स (प. बंगाल), श्री रेणुका शुगर्स (कर्नाटक), और मागरपट्टा सिटी (पुणे) इन सभी का निर्माण कार्य किसान परिवारों के द्वारा सव्यम किया जिसके लिए कपनी ने उन्हें प्रशिक्षण दिया था

सरकार के इस तरह भूमि अधिग्रहण के उदेश्य के लिए केवल वही किसान अपनी जमीं बेचना चाहते है जो पहले ही शहर आ गया है और उनका भरन पोषण अच्छी तरह से हो रहा है उनकी जमीं तो पहले कोई और जोत जोत रहा था जिसे वह बटाई पर दे चूका है लेकिन जो किसान उस जमीन पर हल जोत रहा था उसका क्या होगा कभी सोच है किसी ने भी , लेकिन जमीन का मालिक तो जमीन जरूर बेचना चाहेगा उसे यदि एक दम उस बटाई का १०० गुना पैसा मिला रहा है तो वह सहर्ष तैयार होगा साथ ही वह किसान भी अपनी जमीन दे सकता है जिससे खेती नही होती और वह मजदूरों से कराता है या शहरी चकाचोंद से भूरी तरह प्रभावित किसान जिसे केवल खुद से मतलब है आने वाली पीढियों से नहीं

मेरा इस लेख से केवल इतना प्रयोजन है की सरकार मे बेठे शहरी लोग जो गाँव से आकर शहर के होकर रह गए है वे इस पर ध्यान दे की शहर अक्सर समस्या को जन्म देते है और गाँव जीवन ये चाहे पर्यावरण के सन्दर्भ मे हो, चाहे संसाधन के उचित प्रयोग के


अंत मे सबसे प्रमुख बात यदि खेती की जमीन ही नहीं रहेगी तब मनुष्य क्या खायेगा जबकि आज भी हमारे देश मे लगभग ३० प्रतिशत आबादी भूखे पेट या अल्प भोजन कर जीवन यापन कर रही है ? क्या आनाज की कम उपज माशाहार को बढ़ावा नहीं देगी ? अभी और बहुत से सवाल बाकी है ............................

जय जवान जय किसान

Wednesday, October 6, 2010

वो है किसान











दुनिया मे कोई ईश्वर का सबसे बड़ा भक्त है तो वो है
किसान
दुनिया मे यदि कोई ईश्वर को प्रिय है तो वो है
किसान
दुनिया मे यदि कोई सबसे अधिक सुखी या फिर दुखी है तो वो भी है
किसान



आप सोचते होंगे की मे किस तरह की बात कर रही हूँ


गाँव मे आती है मिट्टी की खुसबू जो जीवन है हर मानवता का आप को क्या
क्या बताऊ गाँव के बारे मे आप स्वयम अपने परिवार की किसी ऐशी पीढी से
पूछे जो गाँव मे रही है वो भी शायद कहे की शब्द नहीं है होने के पास वो
अनुभव बयान करने के लिए लकिन उनके चहरे पर आई ख़ुशी से आप केवल अंदाजा भर
लगा सकते हो लेकिन उसे जब तक जियोगे नहीं तब तक आपको उस मिठास के विषय मे
बताना अतिशोय्क्ति जैसा लगेगा और ये गलत भी नहीं है गाँव जहाँ व्यक्ति
नहीं रहता और न ही रहते है आज कल का परिवार (माँ, पिता और उनके बच्चे )
वहाँ है तो परिवार अपने पूरे रूप रंग मे जिसमे लगभग सभी रिश्ते - नाते
माता -पिता ,दादा -दादी ,चाचा -चाची,ताऊ- ताई, बहन - भाई अथवा कुटुंब
(कुनबा) जिसमे कुछ गाँव तो केवल एक ही वंश का होता है और पूरे गाँव के
लड़के -लड़कियों के बीच कोई न कोई रिश्ता - नाता होता है और उसे वो पूरी
ईमानदारी से निभाते है



गाँव कोई पिछड़ा हुआ सामाज नहीं है बल्कि वो तो अपने आप मे पूरी तरह
आत्मनिर्भर सामाज है और वो अक्सर उन लोगो के लिए भी सेवा भावः से कार्य
करता है जो शहर मे रहते है उसे उनसे कोई डर नहीं है बल्कि उसको वो अपने
भाई के समान जीवन भर अन्न का प्रसाद देता है और इसे अपना पहला कर्तव्य
समझता है


Wednesday, April 14, 2010

पंच परमेश्वर



पंचायते
मानव आरम्भ मे अकेला हो ये संभव नहीं हो सकता क्योकि मानव की उत्पति का मूल नियम सभी को पता है ये जरूर है की आरम्भ मे मानव की संख्या दो से लेकर दहाई या सेकडो हो उनमे कुछ कमजोर होंगे कुछ ताकतवर लेकिन अन्य पशु - पक्षियों से बचाव के लिए, सबसे महत्वपूर्ण जीवन के लिए उन्होंने कुछ नियम कायदे बनाये जो पीढ़ी दर पीढ़ी बदलते रहे

आज हम कानून का जो रूप देखते है वो मानव को मानव अधिकार प्रधान करता है लेकिन समय के साथ कुछ मानव समूह अपनी स्वार्थसिद्दी पूरी करने के लिए कानून के रखवाले बन बेठे है जैसे पंच, न्यायधिश, मौलवी अन्य

आज सभी को पता है की यदि आप अदालत मे अपने पक्ष को रखने के लिए जायेंगे तो वहां अदालत को कुछ खर्चे अदा करने होंगे जो हर याचक नहीं कर सकता साथ ही अदालतों मे लगने वाला वक़्त किसी भी निरपराधी को अपराधी की तरह ही भुगतना पड़ता है रही सही कमी अदालतों और सभी सरकारी, गैर सरकारी विभागों मे फैला भ्रस्टाचार पूरी कर देता है अब इंसाफ कहाँ मिले इस खोज का अंत यहीं तो नहीं

पंच (पंचायते) हर घर, परिवार, कुटुंब, समाज अपने बीच मे से कुछ सामाजिक लोगो को इस बात का अधिकार देते है की वो उनके (विवादित) फैसले करे एक दो इंसान किसी का पक्षपात कर सकता है इसलिए वो कम से कम पांच लोगो को ये अधिकार देते है जिससे उनका वक़्त और धन दोनों बच जाते है

जिस प्रकार अदालते झूठे गवाह और नकली सबूतों के आधार पर निरपराध को सजा दे देती है उसी प्रकार कभी इन पंचो से भी गलत फैसले ही जाते हो लेकिन इन्हें नकारा नहीं जा सकता

आजकल इस तरह की पंचायतो पर कुछ आरोप लग रहे जिनमे प्रमुख गोत्र विवाद है
किसी भी गाँव मे अक्सर ये माना जाता है की सभी लड़के लड़की एक दुश्रे को भाई बहन की नज़र से देखगे लेकिन फ़िल्मी चकाचोंध मे कुछ युवा भ्रमित होकर इस रिश्ते को दागदार कर रहे है आप ही सोचे यदि आपके घर आने वाला कोई लड़का या लड़की एक दिन चुपचाप एक दुश्रे के हो जाए या शारीरिक सम्बन्ध बना ले तब कैसा लगेगा ?
इस तरह के कुछ बच्चे अपने जिद और स्वार्थ को पूरा करने के लिए पंचायतो पर आरोप लगा रहे है कुछ माता पिता जिनकी वो इकलोती संतान हो अथवा किसी से जाति दुश्मनी निकालने के लिए भी इस तरह के अपराध मे अपने बच्चो का साथ दे देते है

अंत मे मै केवल इतना ही कहना चाहूंगी की समाज और सरकार दोनों को ही एक दुश्रे की जरूरत है बल्कि समाज या सरकार लोगो के विश्वाश पर ही कायम है यदि एक बार समाज का भरोशा कानून पर से उठ गया तो ........................................?

Monday, November 30, 2009

किसान

दुनिया मे कोई ईश्वर का सबसे बड़ा भक्त है तो वो है किसान .दुनिया मे यदि
कोई ईश्वर को प्रिय है तो वो है किसान .दुनिया मे यदि कोई सबसे अधिक सुखी
या फिर दुखी है तो वो भी है किसान आप सोचते होंगे की मे किस तरह की बात
कर रही हूँ

गाँव मे आती है मिट्टी की खुसबू जो जीवन है हर मानवता का आप को क्या
क्या बताऊ गाँव के बारे मे आप स्वयम अपने परिवार की किसी ऐशी पीढी से
पूछे जो गाँव मे रही है वो भी शायद कहे की शब्द नहीं है होने के पास वो
अनुभव बयान करने के लिए लकिन उनके चहरे पर आई ख़ुशी से आप केवल अंदाजा भर
लगा सकते हो लेकिन उसे जब तक जियोगे नहीं तब तक आपको उस मिठास के विषय मे
बताना अतिशोय्क्ति जैसा लगेगा और ये गलत भी नहीं है गाँव जहाँ व्यक्ति
नहीं रहता और न ही रहते है आज कल का परिवार (माँ, पिता और उनके बच्चे )
वहाँ है तो परिवार अपने पूरे रूप रंग मे जिसमे लगभग सभी रिश्ते - नाते
माता -पिता ,दादा -दादी ,चाचा -चाची,ताऊ- ताई, बहन - भाई अथवा कुटुंब
(कुनबा) जिसमे कुछ गाँव तो केवल एक ही वंश का होता है और पूरे गाँव के
लड़के -लड़कियों के बीच कोई न कोई रिश्ता - नाता होता है और उसे वो पूरी
ईमानदारी से निभाते है

गाँव कोई पिछड़ा हुआ सामाज नहीं है बल्कि वो तो अपने आप मे पूरी तरह
आत्मनिर्भर सामाज है और वो अक्सर उन लोगो के लिए भी सेवा भावः से कार्य
करता है जो शहर मे रहते है उसे उनसे कोई डर नहीं है बल्कि उसको वो अपने
भाई के समान जीवन भर अन्न का प्रसाद देता है और इसे अपना पहला कर्तव्य
समझता है

Friday, May 22, 2009

कौन बुझाये प्यास


मांग रहा राहगीर पानी
कौन बुझाये प्यास
खाली पड़े कुए, सूख गए तालाब
चातक पक्षी तड़प रहा
आयो न सावन अब की बार
फट्टी दरारे खेतो मे नहीं फसल की अब कोई आश
क्या कोई नहीं ऐशा बुझा सके जो भूमि की प्याश?
भूरे बादल आ गये, है कालो का इन्तिज़ार
नदिया सिमट रही नालो मे कौन बुझाये प्याश
गर्मी - सर्दी दोनों विकराल हुआ मौसम बेहाल


करो धरती पुत्र कोई जतन बुझे जिसे धरा की प्याश
खोद डालो कुए,तालाब,बादल दो मुख नदियों का
लौटा दो कच्ची सतह धरा की सोख ले जो वो पानी
रखो सम्मान इस धरा का ले आओ वो मौसम पहला सा
बरसे बादल घनघोर बुझे धरती की प्याश
गाओ पेड़-पोधे,पक्षी, मनुष्य सब मिलकर एक नया राग-मल्हार


Saturday, May 9, 2009

किसान की जय-जयकार



गाँव- गाँव की एक पहचान

सबसे पहले उठ जाता किसान
खेत- खलिहानों मे करता मेहनत

रहता सदा स्वस्थ और बलवान



इसके जैसी नहीं दूजी मिशाल

भूखा नहीं सोने देता देश को किसान

नहीं कभी सरहद पर फिर भी
छोड़ता नहीं कभी ज़ंग का मैदान



खेत-खलिहानों मे उगा फसल
देता हर जवान का पूरा साथ

प्रकृति देती उसको दोनों हाथो से

ये करता उसका माँ सा सम्मान



भाईचारा धर्म हो जिसका

ईमानदारी मे न कोई तोड़ इसका

नेता करते जिसकी जय-जयकार
भगवान को प्यारा सबसे


शान देखिये उस किसान की

कंधो पर जिसके देश का सम्मान

गाँव- गाँव की एक पहचान

सबसे पहले उठ जाता किसान

Saturday, February 7, 2009

ग्रामवाशियों को राम - राम

गाँव जहां लोग एक - एक पैसे की कीमत जानते है इसलिए वह खेतो मे फसल काटने के बाद एक बार जरूर टूटी हुई फसल की बालियाँ को समेटा करते है जिस से अन्न का एक भी दाना बर्बाद न हो सके क्युकि वह अन्न की वह शक्ति जिससे अन्न अनेक दानो मे और भरे - पूरे पढ़ मे तब्दील होता है को भलीभांति जानता है वह यह भी जानता है की अन्न के एक दाने से भी किसी की भूख शांत हो सकती है ׀ हिन्दू धर्म मे श्री कृष्ण भगवन ने महाभारत मे एक प्रसंग मे द्रोपदी से खीर की खाली हंडिया मे से निकले चावल के एक दाने से अपना तथा आगन्तुक अथितियों को भी पेट भर लिया यदि आप भी किसी गाँव से झूड़े हुए तो आपने जरूर ऐसा देखा होगा ׀

अन्न का ऐशा सम्मान गाँव और भारत वर्ष के अलावा शायद दुनिया मे कंही होता हो शहरो मे अब भी कुछ लोग अन्न को वैशा ही सम्मान देते है जैसा गाँव मे दिया जाता है ׀ भारत देश अपने संसाधनों को बहुत ही उतम ढंग से इस्तेमाल करने वाले लोगो का देश था, है और शायद रहेगा ׀ इस अभिलाषा के साथ मे ये बात कहती हूँ की हमे अपनी सोच और विचार उस लोक कल्याणकारी विश्व गाँव के प्रति प्रेरित करती है ׀ जिसमे शहरो से लोग गाँव की और आयेगें क्युकि उनको वो तरक्की नहीं चाहिए जो आज कल के शहर या विदेशो के शहरो की नक़ल के शहर देते है ׀ बल्कि उनको वो स्वस्थ तन - मन और दिमाग देगा जिससे वो विश्व की सेवा कर सके और ईश्वर के दिए प्राकर्तिक संसाधनों का समुचित और संतुलित उपयोग कर मानव कल्याण की राह बना सके ׀ गाँव जहां आज भी अस्पताल नहीं बल्कि कहीं कहीं तो कोशो दूर तक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा भी नहीं है ׀ शिक्षा के नाम पर केवल प्राथमिक विद्यालय है वो भी एक या दो शिक्षको वाले, पीने का पानी तो सरकार ने नदियों पर बाँध बना कर शहरो के नाम कर दिया ׀ उन्हें अब भी अपनी जरूरतों के लिए किसी तालाब या बावडी पर निर्भर रहना पड़ता है ׀ हां एक बात जरूर है वो है प्रकाश की प्राक्रतिक व्यवस्था सरकार की बिजली तो अभी तक शहरो मे भी चली जाती है तो गांवो तक पहुचने मे तो अभी वक़्त लगेगा ׀

गाँव का ये रूप देखकर कहीं आप डर तो नहीं रहे है क्युकि ये रूप तो शहर वालो ने बनाया है लकिन गाँव आज भी उस कुदरत की सबसे सुन्दर रचना है जिसमे नर तो क्या पशु ,पक्षी और कीडे - मकोडे सब का जीवन सुरक्षित है सबको अपने हिस्से का भोजन - पानी बराबर मिलता है ׀ कभी कोई बीमार नहीं होता और यदि होता भी है तो प्राक्रतिक उपचार के द्वारा तुंरत ठीक भी हो जाता है ׀ जहां आज भी लोग अपने घरो मे आये हुए अजनबी को भी भोजन कराना नहीं भूलते चाहे स्वयम भूखा रहना पड़े ׀ किसी को कोई दुःख हो अथवा सुख सभी अपनी - अपनी तरह से मदद करने का पूरा प्रयत्न करते है ׀

आज दुनिया मे जारी मंदी से भारत को किसी ने बचा रखा है तो वो ग्रामीण प्रव्रति ही है जिससे देश कभी भी आने वाले बाढ़ ,सुखा , भूकंप जैसी प्रक्रतिक और रेल पलटने पर ,जहाज गिरने पर अथवा देश पर किसी भी तरह के आक्रमण के समय सबसे पहले ये ग्रामीण ही लोहा लेते दिखाई देते है ׀ क्या शहर मे रहने वाले ऐशा करते है ?


गाँव के विषय मे आप लोगो से आपके विचार आमंत्रित करती हूँ